समय बदल गया है ।
आज मैं अपनी पहली कहानी आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं । यह कहानी समयानुसार हो रहे परिवर्तनो' को दर्शाने की भरपूर कोशिश की गई है । मै कामना करता हूं कि आप सभी को यह कहानी पसंद आएगी ।
इस संसार में व हमारे जीवन में क्षण प्रति क्षण परिवर्तन हो रहा है जिसमें कुछ निम्र पहलुओं में हुए समाजिक परिवर्तनो को दर्शाने की कोशिश कर रहा हूं ।
समय के अनुसार इस संसार में बहुत से समाजिक बदलाव हुए हैं जो देखने में तो बहुत अच्छे लगते हैं परन्तु वास्तव में यह हमारी जिंदगी में बहुत हानिकारक है ।
रहन-सहन : आज हम पक्के व दोमंजिला तिमंजिला घरों में रहते हैं। लगभग प्रत्येक परिवार में परिवार के हरेक व्यक्ति का अपना अलग-अलग कमरा है जिसमें बैड, सोफा, अलमारी, एल सी डी, एसी या फिर कुलर/ पंखे व आधुनिक रोशनी उपकरणों से सुसज्जित होते हैं । परन्तु परिवारिक सदस्यों में प्रेम भाव लेस मात्र ही होता है । जबकि पहले तो एक ही कमरा होता था जिसमें परिवार के सारे सदस्य रहते थे । मुझे आज भी याद है कि हम सभी परिवारिक सदस्य एक साथ बैठ कर देर रात तक कहानियां, चुटकुले इत्यादि सुनते व सुनाते थे । गली मोहल्ले तो क्या, पूरे गांव के लोगों से जान पहचान होती थी और आजकल तो पड़ोसी पड़ोसी को नहीं पहचानता है ।
सगे संबंधियों से मेलजोल : पहले सगे संबंधियों में बहुत प्यार होता था । बच्चों को जब स्कूल की छुट्टीयाऺ होती थीं तो बच्चे अपने ननिहाल, भुआ, मौसी या किसी अन्य सगे संबंधी के घर जाकर पूरी छुट्टियों का पूरा मज़ा लेते थे । अगर किसी सऺबऺधी के घर में विवाह शादी का कार्यक्रम होता था तो विवाह संबंधी फैसले बच्चों के मां बाप अपने सगे-संबंधियों की राय के आधार पर ही लिए जाते थे । विवाह वाले घर में रिस्तेदार दस-पंद्रह दिन पहले ही आ जाते थे । विवाह वाले घर में रंगाई पुताई व विवाह की तैयारियां मिल कर करते थे । घर में ही सजावट कर बरात के खाने-पीने और ठहरने का इंतजाम किया जाता था। विवाह समारोह के समापन के बाद भी कई रिस्तेदार कुछ दिन रह कर ही अपने घरों को लौटते थे । और आजकल तो विवाह के एक दो दिन पहले ही फोन पर निमंत्रण दिये जाते हैं कि उस पैलेस में विवाह का कार्यक्रम रखा गया है और इतने बज़े का समय तय किया गया है । वास्तव में निमंत्रण देने वाला भी बस खानापूर्ति कर रहा होता है और दिल में उसके यही होता है कि आगे आने वाले की इच्छा है, आना है तो आते नहीं आना है तो मत आये । उधर जिसको विवाह का निमंत्रण दिया जाता है तो वो भी सोचता है कि यह कहां से एक और खर्चा पैदा हो गया है । फिर ये निर्णय लिया जाता है कि विवाह कार्यक्रम शुरू होने से दस मिनट पहले जायेंगे, वर वधू को सगुण देकर और खाना वाना खा पीकर आधे पौने घंटे में घर वापस आ जाएंगे ।
पहले लोगों के दिलों में एक दूसरे के प्रति बहुत स्नह हुआ करता था और आजकल कोई किसी की परवाह नहीं करता है । आजकल लोगों के पास पर्यप्त धन संपदा है इसलिए कोई किसी की परवाह नहीं करता है और पहले लोगों के पास पर्यप्त धन का अभाव होता था जिससे वे एक दूसरे से मेलजोल रख कर अपनी जरूरतों को पूरा करते थे । यही एक मूलमंत्र था जो लोगों के दिलों में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव पैदा करता था ।
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ok
ReplyDeleteKya khoob
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