Tuesday, August 26, 2025

शिष्य बनने की योग्यताएँ

 शिष्य बनने की योग्यताएँ

      जैसे गुरु के गुण बताए जाते हैं, वैसे ही शिष्य की भी कुछ योग्यताएँ होती हैं।

       एक सच्चे शिष्य के बिना गुरु का ज्ञान भी पूर्ण फल नहीं देता।

शिष्य बनने की योग्यताएँ :-

1. श्रद्धा (आस्था) – गुरु और उसके वचनों पर विश्वास हो।

2. विनम्रता – अहंकार छोड़कर विनयपूर्वक सीखने की भावना हो।

3. जिज्ञासा – सच्चा शिष्य ज्ञान पाने की प्रबल इच्छा रखता है।

4. अनुशासन – गुरु की मर्यादा, समय और नियमों का पालन करे।

5. धैर्य – ज्ञान और साधना में समय लगता है, जल्दी हार न माने।

6. सेवा भाव – गुरु और उसके मार्ग में निस्वार्थ सेवा करने की प्रवृत्ति।

7. समर्पण – अपने संदेह, आलस्य और स्वार्थ को त्यागकर पूरी निष्ठा से समर्पित होना।

8. कृतज्ञता – गुरु के उपदेश और कृपा के लिए सदैव आभार मानना।

9. सत्यनिष्ठा – शिष्य का हृदय निर्मल और सच्चा होना चाहिए।

10. अभ्यासशीलता – केवल सुनना नहीं, बल्कि जो सिखाया गया है उसे जीवन में उतारना।


संक्षेप में—

👉 शिष्य वही कहलाता है जो खाली पात्र की तरह हो, जिसे गुरु अपनी विद्या और अनुभव से भर सके।



Friday, August 22, 2025

गुरु कैसा होना?

  •  गुरु कैसा होना?

गुरु केवल पढ़ाने वाला नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा देने वाला प्रकाशस्तंभ होता है।

एक सच्चे गुरु में कुछ विशेष गुण होने चाहिए—

  1. ज्ञानवान – शास्त्र, विद्या और व्यवहार का गहरा ज्ञान हो।
  2. अनुभवी – केवल किताबों से नहीं, अपने जीवन के अनुभव से भी मार्गदर्शन करे।
  3. निर्लोभी – शिष्य से धन, यश या स्वार्थ की अपेक्षा न रखे।
  4. धैर्यवान – शिष्य की गलतियों को सहकर उसे सही राह दिखाए।
  5. करुणामयी – शिष्य के दुख–सुख में सहभागी बने।
  6. आदर्श जीवन वाला – जैसा वह सिखाए, वैसा ही स्वयं आचरण करे।
  7. प्रेरणादायी – शिष्य के भीतर सुप्त क्षमता को जगाकर उसे ऊँचाई तक पहुँचाए।
  8. समदर्शी – सभी शिष्यों को समान भाव से देखे, किसी में पक्षपात न करे।
  9. सत्यप्रिय – सत्य के मार्ग पर अडिग रहकर शिष्य को भी वही राह दिखाए।
  10. आत्मज्ञान से युक्त – केवल बाहरी विद्या ही नहीं, भीतर की शांति और आत्मा का बोध भी दे सके।

संक्षेप में –
👉 गुरु वही है जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए, शिष्य को केवल विद्वान ही नहीं बल्कि उत्तम इंसान बनाए।

Thursday, August 21, 2025

आज़ादी


आज हम आजाद भारत देश के नागरिक तो हैं लेकिन हमारे देश को आजादी कैसे मिली है इसके बारे में सभी भारतीयों को जानना बहुत जरूरी है । हमारे देश को मुगलों और अंग्रेजों ने अपनी हुकूमत की जंजीरों में सदीयो तक जकड़े रखा था । मुगलों और अंग्रेजों की हुकूमती जंजीरों को भारतीयों ने अपना रक्त को बहा कर भारत को मुगलों और अंग्रेजों की हुकूमती जंजीरों को तोड कर भारत को आजादी दिलाई थी । तभी तो आज हम सभी आजादी के मजे ले रहे है ।

आजादी को पाने के लिए किसी विशेष राज्य का योगदान नहीं रहा वल्कि सम्पूर्ण भारत के प्रत्येक राज्य के नागरिकों ने अपना रक्त बहाया है और अपना बलिदान दिया है । बहादुर शाह ज़फ़र, हो झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे, बाल गंगाधर तिलक, विपीन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय, भगत सिंह, उधम सिंह, करतार सिंह सराभा, सुभाष चन्द्र बोस तथा और न जाने कितने भारतीयों ने अपना जीवन, भारत को आजादी दिलाने में बलिदान कर दिया है । भारत को आजादी दिलाने में हिंदुओं, मुस्लिमों और  सिखों ने अपना रक्त बहाया है अतः हमें सभी शहीदों को नमन करना चाहिए ।


"गुरु और ज्ञान गंगा"

"गुरु और ज्ञान गंगा" का अर्थ और महत्व बहुत गहरा है। इसे एक रूपक के रूप में समझा जा सकता है:

गुरु: गुरु वह व्यक्ति होते हैं जो अपने ज्ञान, अनुभव, और मार्गदर्शन से शिष्य को दिशा देते हैं। गुरु, विशेष रूप से भारतीय संस्कृति में, ज्ञान के वाहक और दिव्य आशीर्वाद के स्रोत माने जाते हैं। वे शिष्य को अज्ञानता से उबारकर ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की ओर मार्गदर्शन करते हैं।

ज्ञान गंगा: जैसे पहले बताया, यह ज्ञान का निरंतर प्रवाह या स्रोत होता है, जो शिष्य को शुद्ध करता है और उसे आध्यात्मिक या बौद्धिक उन्नति की दिशा में ले जाता है। यह गंगा नदी के समान है, जो सभी को शुद्ध करती है और जीवन को एक नई दिशा देती है।

"गुरु और ज्ञान गंगा" का संयोजन इस अर्थ में है कि गुरु ही ज्ञान गंगा के समान होते हैं। वे ज्ञान के उस स्रोत की तरह होते हैं जो शिष्य के जीवन में प्रवाहित होता है, उसे शुद्ध करता है और उसे उच्चतम सत्य की ओर मार्गदर्शन करता है। गुरु की उपस्थिति और उनके द्वारा दिए गए ज्ञान से जीवन में एक नई रोशनी आती है, जैसे गंगा नदी जीवन को पवित्र करती है।

इस वाक्य में गुरु के महत्व और उनके ज्ञान के प्रवाह का अत्यधिक आदर और सम्मान व्यक्त किया गया है।

करोना

धरती पर जब भौज बढ़ा तो,
पड़ी सोच में पूरी ब्रम्हाई ।
फिर एक युक्ति बुझी ब्रम्ह को,
तो चीन अबतारे करोना महामारी ।।

                                 भ्रष्ट हुए जब मालिक घर के,                       
                                 और जब चोर हुई लूगाई !
                                 डाकू हुए जब चौकीदार तो, 
                                 आम जनता फिरे मारी घबराई ।।
                                 धरती पर जब भौज बढ़ा तो...........

करे आदमी कितना जुल्म भी,
इक दिन हुई सच की सुनवाई ।
आदमी हुआ, बन्द कमरे में ,
और बन्द हुए गली बजार हलवाई ।
धरती पर जब भौज बढ़ा तो...........
 
                                   गाड़ी मोटर सभी बन्द हुई जब,
                                  और सभी फैक्ट्री में तालाबंदी छाई ।
                                  खत्म हुआ अब प्रदुषण सारा,
                                  चारों तरफ प्रकृति खुशी से हर्षाई ।।
                                  धरती पर जब भौज बढ़ा तो...........


                                .........***..........

"ज्ञान गंगा"

"ज्ञान गंगा" एक रूपक वाक्य है, जिसमें:

"ज्ञान" का मतलब होता है "ज्ञान" या "समझ"।

"गंगा" से तात्पर्य है गंगा नदी, जो हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र और आध्यात्मिक महत्व रखती है।

इसलिए, "ज्ञान गंगा" का अर्थ होता है "ज्ञान की गंगा" या "बुद्धि का प्रवाह।" यह ज्ञान या समझ के निरंतर प्रवाह को दर्शाता है, जैसे गंगा नदी निरंतर बहती है और अपने मार्ग में सब कुछ शुद्ध कर देती है। यह वाक्य अक्सर उन स्रोतों का संकेत देने के लिए इस्तेमाल होता है जो गहरे या दिव्य ज्ञान का प्रवाह करते हैं और जो व्यक्ति की मानसिकता और आत्मा को शुद्ध करते हैं।

शिष्य बनने की योग्यताएँ

  शिष्य बनने की योग्यताएँ       जैसे गुरु के गुण बताए जाते हैं, वैसे ही शिष्य की भी कुछ योग्यताएँ होती हैं।        एक सच्चे शिष्य के बिना गु...